Post Details

झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर फ़ोटो | Jhaad Ukhaad Hanuman Temple (झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर)near indore (madhya pradesh) | क्यों रखा गया नाम झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर ?

AjayPatel

Sat , Sep 30 2023

AjayPatel

Places to visit near indore for 1 day trip | Places to visit near indore within 50 km

Jhaad Ukhaad Hanuman Mandir near indore visit for feel the nature  

प्रकृति की गोद में बसा पहाड़ों के बीच में जंगल का आनंद लेते हुए श्री राम भक्त हनुमान जी का मंदिर है झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर |

झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर एक अति सुंदर मंदिर है। इस स्थान पर हनुमान जी द्वारा चमत्कारी रूप से 50 से 80 पेड़ों को नष्ट कर प्रकट होने की की

कहानी  है  यहां साल 2002 में भगवान हनुमान ने मंदिर की जगह के लिए खुद पेड़ उखाड़कर फेंक दिए थे।


क्यों रखा गया नाम झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर ?


जंगल में सुरम्य, खूबसूरत वादियों के बीच भगवान हनुमान जी का मंदिर स्थित है, साथ ही राम दरबार और विशाल शिवलिंग भी है। कहा जाता है कि यह मंदिर


2002 का है। जहां मंदिर बनाया जाना था वहां के पेड़ (झाड़) एक ही रात में अपने आप उखड़ गए थे, इसलिए इस मंदिर का नाम झाड़ उठाक हनुमान मंदिर


रखा गया। 


यह देवनलिया गांव में एक सुंदर मंदिर है जो कि उदय नगर के पास है।  जो करीब इंदौर से 55 किमी. दूर बहुत सुंदर क्षेत्र और गांव में है। इस जगह को


आराम और शांति के लिए बहुत पसंद किया जाता है। 


झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर एक बहुत ही अच्छी जगह है हनुमान जी के साथ इसी परिसर में  माँ भवानी, बाबा महाँकाल, श्री गणेश, और राम दरबार भी है


सभी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त करे। 


झाड़ उखाड़ हनुमान मंदिर एक  बहुत ही धार्मिक स्थान हैं  मंदिर लगभग 20 वर्ष पुराना है। आप परिवार के साथ घूमने जा सकते हैं। सड़कें बहुत अच्छी हैं.

कार या बाइक से यात्रा कर सकते हैं. 


झाड़-उखाड़ हनुमान मंदिर एक चमत्कारिक मंदिर है क्योंकि जब मैंने इस मंदिर के बारे में जाना तो मैंने देखा। उस समय मंदिर तक पहुंचने का कोई रास्ता


नहीं था लेकिन कुछ समय बाद लाइन से लाइन में एक-एक करके पेड़ टूटे हुए थे। जब लोग इसे देख रहे थे। तो वे सभी आश्चर्यचकित हो गए कि यह भगवान


हनुमान जी के कारण हुआ है। लेकिन अब आप पूजा के लिए जाएंगे तो आपको सही सड़क दिखेगी. सरकार ने बहुत सुधार किया उसमें पहले से .



यह घूमने के लिए बढ़िया जगह है | इस मंदिर का मार्ग बहुत सुंदर है। विशेषकर सर्दियों में ️️और बारिश में |


इस मंदिर के दर्शन ने मेरा दिन बना दिया। वहां सकारात्मक ऊर्जा भरी हुई थी . मंदिर में प्रवेश करने के बाद मुझे बहुत सुकून महसूस होता है | इसके थोड़ा


सा आगे निकट गांव में एक पहाड़ों के मध्य एक विशाल तालाब है जहा पर आप नहाने और घूमने का आनंद ले सकते है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ यहां


पहुंचना ज्यादा मजेदार है। रास्ते में आप छोटे झरने और नदी पर रुक सकते हैं।



जंगल में स्थित होने के कारण यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। साल के किसी भी समय वहां जा सकते हे | साथियों के साथ दर्शन लाभ का अवसर


मिला, धार्मिक यात्रा में बहुत आनंद आया। एक बार जरूर विजिट करें.



इसके आगे कुछ ही दूर अखिलेश्वर मठ है। इसे ओखलेश्वर मठ भी कहा जाता है।



जिनके हृदय में धनुर्धारी राम बसते हों उन रामभक्त हनुमान का समूचा व्यक्तित्व ही अनुपम और अद्वितीय है। सप्त चिरंजीवियों में से एक


पवनसुत के भारत के साथ ही दुनिया के दूसरे  देशों में काफी मंदिर हैं, उनकी सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं मगर अखिलेश्वर मठ की तो


बात ही निराली है। यहां पर आंजनेय हनुमान का ऐसा मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस तरह का मंदिर अन्यत्र कहीं भी नहीं है। मध्यप्रदेश की


वाणिज्यिक राजधानी इंदौर से करीब 45 किलोमीटर दूर घने जंगल में स्थित है यह अखिलेश्वर मठ। इसे ओखलेश्वर मठ भी कहा जाता है। यहीं पर


प्रतिष्ठित है रुद्रावतार हनुमानजी की दुर्लभ प्रतिमा। सिद्ध हनुमान की यह प्रतिमा इसलिए दुर्लभ और अनूठी है क्योंकि इनके एक हाथ में शिवलिंग है,


जबकि ज्यामूर्तियों के हाथ में द्रोणागिरि होता है।


इस बारे में मान्यता है कि राम-रावण युद्ध से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के लिए हनुमानजी नर्मदा की सहस्त्रधारा धावड़ी घाट से शिवलिंग लेकर


लौट रहे थे। यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण वे कुछ समय के लिए यहां रुके थे। हालांकि जब तक हनुमानजी शिवलिंग लेकर रामेश्वरम वे पहुंचे

 

तब तक वहां महादेव की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी थी। ऐसा माना जाता है कि वह शिवलिंग आज भी तमिलनाडु के धनुषकोटि में स्थापित है।


खरगोन जिले के बड़वानी के समीप स्थित इस मठ में एक शिव मंदिर भी है, जिसके बारे में मंदिर के महंत सुभाष पुरोहित बताते हैं कि यह द्वापर काल का है।


यहां तीन शिलालेख भी उत्कीर्ण है। हालांकि स्पष्ट नहीं होने के कारण उन्हें पढ़ा नहीं जा सकता। एक मान्यता यह भी है कि यह मंदिर त्रेता युग के राजा


श्रियाल के समय का है। च्यवन ऋषि, मार्कडेय ऋषि, विश्वामित्र आदि मनीषियों की तपस्थली भी रहा है रेवाखंड का यह क्षेत्र। जनश्रुति के अनुसार इस क्षेत्र में


स्वयंभुव मनु और शतरूपा ने भी तपस्या की थी। यहां एक कुंड भी है साथ शेषशायी विष्णु का मंदिर भी है।


ऐसा माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का ज्यादातर हिस्सा इसी क्षेत्र में रचा गया। वह स्थान जहां वाल्मीकि आश्रम हुआ करता था,


अखिलेश्वर मठ से करीब 20 किलोमीटर दर है।यह ताम्रपूर्ण तमसा नदी के तट पर है, जिसे वर्तमान में पूर्णी नदी कहा जाता है। वेद मनीषी और श्री मारुति 


वेद वेदांग अनुसंधान केन्द्र राजस्थान के प्रमुख यज्ञाचार्य पंडित चिरंजीव शास्त्री इस मठ की विशेषताओं के बारे में कहते हैं कि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है।


यहां प्रतिष्ठित शिवलिंग की स्थापना स्वयं श्रीकृष्ण ने की थी।


इस क्षेत्र को पुन: सुर्खियों में लाने का श्रेय जाता है दिवंगत संत ओंकारदासजी महाराज को। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पुष्कर के निकट वामदेव की


गुफा में कठोर तपस्या की थी तत्पश्चात शिव के आदेश से ही वे अखिलेश्वर मठ आए थे। जिस समय वे आए थे, उस समय घना जगंल तो था ही जंगली जानवर 


भी यहां काफी संख्या में थे। उन्होंने ही वर्षों से जीर्णशीर्ण इस मंदिर को पुन: जागृत किया था। मठ में करीब चार दशकों से अखंड रामायण पाठ भी चल रहा


है। यहां शिवरान्नि, कार्तिक पूर्णिमा, वैकुंठ चतुर्दशी और हनुमान जयंति पर विशेष उत्सव का आयोजन होता है। चैत्र नवरात्रि के दौरान यहां


यज्ञ का आयोजन भी होता है। 


इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहां हनुमान जी को सिर्फ रोहिणी नक्षत्र में ही चोला चढ़ाया जाता है, जबकि अन्य मंदिरों में मंगलवार को


शनिवार को चोला चढ़ाया जाता है। हनुमान जयंती की पूर्णिमा पर बजरंगबली का सहस्त्रधारा अभिषेक होता है।


जनश्रुतियों के मुताबिक इस क्षेत्र में श्रीपाल नामक एक राजा हुए थे, जिन्हें सरियाल के नाम से भी जाना जाता था। अपनी दानप्रियता के कारण राजा श्रीपाल की


चर्चा चारों ओर फैली हुई थी। एक बार भगवान शिव राजा की परीक्षा लेने के उद्देश्य से से भेष बद लकर उनके यहां आए और उनसे मांस खाने का अनुरोध


किया।राजा ने अपने स्वभाव के अनुरूप तत्काल जंगली जानवरों का मांस अतिथि को उपलब्ध करा दिया। इस पर अतिथि ने कहा कि वे तो मनुष्य का मांस ही


खाएंगे तो इस पर राजा ने कहा कि मैं किसी प्रजाजन का मांस आपको उपलब्ध करा देता हूं। इस पर उन्होंने कहा कि प्रजाजन का मांस आप कैसे उपलब्ध


करवा सकते हैं? तत्पश्चात राजा ने खुद को प्रस्तुत कर दिया। उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि आप वृद्ध है, अत: आपका मांस नहीं चाहिए।


इस पर राजा ने अपने पुत्र राजकुमार चिन्मयदेव, जिसे चीलिया भी कहा जाता था, का मांस याचक को उपलब्ध करवाया। हालांकि राजा ने पुत्र के मस्तक वाला


भाग सोचकर रखा कि वे बाद में उसकी कपाल क्रिया कर देंगे ताकि उसे मुक्ति मिल सके। मगर अतिथि ने यह कहकर भोजन करने से इनकार कर दिया


मस्तिष्क वाला भाग तो आपने छुपा लिया है, वे तो मस्तिष्क वाला भाग ही खाएंगे। 


इस पर राजा और रानी कांतिदेवी (एक नाम चांगना भी) ने बड़े ही दुखी मन से ओखली में कूटकर अपने पुत्र के मस्तिष्क का भाग अतिथि को दे दिया। इसके


बाद अखिलेश्वर शिव अपने असली रूप में आ गए।उन्होंने राजा के पुत्र को पुन: जीवित कर दिया और राजा को वरदान भी दिया।


कहा जाता है कि राजकुमार का सिर ओखली में कूटने के कारण ही गांव का नाम ओखला है और यहां स्थित मंदिर ओखलेश्वर है। ऐसा माना जाता है कि 


सरियाल राजा के नाम से ही यहां पास में श्रियालिया गांव है और रानी चांगुना के नाम से चंद्रपुरा। राजकुमार चीलिया के नाम से चैनपुरा गांव बसा। इनकी


राजधानी कांतिनगर थी, जिसे वर्तमान में काटकूट के नाम से जाना जाता है।


उम्मीद है, आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी, अपने सुझाव हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएं और इसी तरह की पोस्ट पढ़ने के लिए LifeDb.in पर विजिट कीजिए |

धन्यवाद

tags-#JhaadUkhaadHanumanTemple, Deonalya, Madhya Pradesh, #jhadukhadhanuman, #jhad ukhad hanuman indore, #jhad ukhad hanuman, #jhaad ukhaad hanuman temple deonalya photos, #places to visit near ujjain within 200 km, #tourist places near indore within 200 km, #places to visit near indore within 50 km,#places to visit near indore within 300 km, #tourist places near indore within 300 km

     Instagram Page :Follow lifedb_official on insta

     Facebook Profile:Follow Lifedb_official page on facebook

  Linkedin Profile:Follow lifedb_official on linkdin

      Twitter Profile: Follow lifedb_official on X

          WhatsApp Profile :

Fasting and Feasting :

One of the key aspects of Navratri is fasting. Devotees abstain from certain foods, typically grains and non-vegetarian items, and partake (hissa lena) in a diet that includes fruits, nuts, and special Navratri recipes. Sabudana khichdi, kuttu(Buckwheat flour ) ke pakode, and rajgira paratha are some of the popular dishes enjoyed during this period.


Rituals and Pujas:

Navratri is a time for prayer and worship. Devotees visit temples, perform elaborate pujas (rituals), and recite mantras dedicated to Goddess Durga. The atmosphere is filled with the fragrance of incense and the melodious sounds of devotional songs.


Navratri is a celebration of faith, culture, and unity. It is a time when families and communities come together to honor the divine and revel in the joy of togetherness. As the air fills with the beats of Garba and the fragrance of festive delicacies, Navratri brings people closer to their roots and to the divine energy that resides within us all.

So, whether you're participating in the lively Garba dance, relishing the delicious vrat (fasting) recipes, or simply soaking in the festive spirit, Navratri is a time to rejoice, rejuvenate, and revel in the blessings of Goddess Durga.

Wishing you all a joyous and blessed Navratri!

 "Thank you very much for giving your precious time."

Leave a Reply

Please log in to Comment On this post.